उपन्यास >> बिसात पर जुगनू बिसात पर जुगनूवंदना राग
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बिसात पर जुगनू श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है।
बिसात पर जुगनू सदियों और सरहदों के आर-पार की कहानी है। हिंदुस्तान की पहली जंगे-आजादी के लगभग डेढ़ दशक पहले के पटना से शुरू होकर यह 2001 की दिल्ली में ख़त्म होती है। बीच में उत्तर बिहार की एक छोटी रियासत से लेकर कलकत्ता और चीन के केंटन प्रान्त तक का विस्तार समाया हुआ है। गहरे शोध और एतिहासिक अंतर्दृष्टि से भरी इस कथा में इतिहास के कई विलुप्त अध्याय और उनके वाहक चरित्र जीवंत हुए हैं। यहाँ 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की त्रासदी है तो पहले और दूसरे अफीम युद्ध के बाद के चीनी जनजीवन का कठिन संघर्ष भी। इनके साथ-साथ चलती है, समय के मलबे में दबी पटना कलम चित्र-शैली की कहानी, जिसे ढूंढती हुई ली-ना, एक चीनी लड़की, भारत आई है। यहाँ फिरंगियों के अत्याचार से लड़ते दोनों मुल्कों के दुखो की दास्तान एक-सी है और दोनों जमीनों पर संघर्ष में कूद पड़नेवाली स्त्रियों की गुमनामी भी एक सी है। ऐसी कई गुमनाम स्त्रियाँ इस उपन्यास का मेरुदंड है।
बिसात पर जुगनू कालक्रम से घटना-दर-घटना बयान करनेवाला सीधा (और सादा) उपन्यास नहीं है। यहाँ आख्यान समय में आगे-पीछे पेंगें मारता है और पाठक से, अक्सर ओझल होते किंवा प्रतीत होते कथा-सूत्र के प्रति अतिरिक्त सजगता की मांग करता है।
- संजीव कुमार
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